---------- झरना जीवन का ----------
एक किलकारी गूंजी थी, रुदन पर सब हर्षाये थे |
मीठी नींद आती थी, कितने तो हम साये थे ||
एक छोटी सी दुनिया थी, जहाँ मन नहीं; अमन था |
बिना बात के नाचे, गायें; और जुड़ती जाती जनता |
झर-झर, झर-झर, झरता था, जो झरना था जीवन का ||
एक गर्जना उठी गगन में, कितने तो घबराये थे |
गुरूर की दहाड़ पे बस, हम ही तो इतराए थे | |
दुनिया एक छोटी चीज़ थी, बड़ा तो मेरा मन था,
इस दुनिया में ऐसे उलझे, अब मेरा मन ही भवन था |
ऐसे कैसे नाचे, गायें, किया ये हमने कब था,
झरने पे बांध बनाया था बस, और बंधा सारा जीवन था ||
एक चीख भी निकली हैं, हो गये हैं शर्मिंदा |
जीवन कैसे बंध जायेगा, हैं जब तक हम जिंदा ||
दुनिया अब भी सुन्दर हैं, वो मायाजाल था मन का |
नहीं मैं राजा राज-महल का, मैं झोंका बस पवन का |
तोड़ बांध ह्रदय के सारे, बह जाये निर्मल गंगा | |
कल-कल, अविरल बहती जाये, जीवन की सतत धारा |
किलकारी फिर से गूंजी हैं, आया सौभाग्य हमारा ||
२०/१२/२०२२
मुकेश कुमार भंसाली
Tuesday, December 20, 2022
झरना जीवन का
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