कोई गम नहीं
एक दिन उस खुदा के सम्मुख, मेरा खुदा खड़ा था,
मैंने अपने खुदा को माना, हालाँकि वो बड़ा था|
मैं अपने खुदा के आगे, एकदम निढाल पड़ा था,
और सर्वत्र खुदा के आगे, सीना तान खड़ा था||
1.) फिर सर्वत्र खुदा ने वक़्त को कुछ ऐसे बदल दिया,
मुझे लगा जैसे, वो मेरे खुदा से जल गया.
मैं अपने खुदा से जुदा हो गया, हमेशा के लिए अलविदा हो गया|
2.) कुछ दिन मैंने गम मनाया, फिर मन को कुछ ऐसे मनाया,
"मेरा खुदा एक सपना था, जिसमें था में खो गया;
प्यार भले ही छुट गया पर मैं आज़ाद हो गया.
अब क्या जीना, अब क्या मरना और क्या दुनिया से डरना,
ज़िन्दगी आराम से जी लूँगा, मुझे इश्क नहीं करना|"
मुकेश कुमार भंसाली
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