--- जीवन यात्रा ----
एक दिन गलियों से गुजर रहा था, कुछ नए चेहरे दिखे,
राहों में उनसे यारी हो गयी, और कुछ प्यारे से बंधन बने |
अब रोज़ महफिलें सजने लगी, धड़कने जोर से बजने लगी:
वक़्त आराम से कटने लगा पर चौराहे से रास्ता बंटने लगा |
विदा होने का वक़्त हो गया, वक़्त थोडा-सा सख्त हो गया:
पर कहते हैं दुनिया गोल हैं, "फिर मिलेंगे" ये तय हो गया ||
कुछ दिन सन्देश मिलते रहे उनके, पर कुछ नए चेहरे साथ थे:
यादें अब भी ताज़ा थी, पर हाथों में नए हाथ थे |
ऐसे ही रास्ते बदलते गए, जीवन के चेहरे नये नये:
लोग आते थे, लोग जाते थे, गोल दुनिया में गुम हो गए ||
वो राहगीर अब भी याद हैं, पर उनका अता पता नहीं|
मैं तो बस चलता गया, इसमें मेरी कोई खता नहीं ||
मंजिल पे आकर भी दिल, उन गलियों में भटक रहा हैं,
गला भी काफी नम हो चला, आँखों में कोई अटक रहा हैं |
इस विशाल धरती पर भी, मन कितना अधर हैं,
महलों की ख्वाहिश में छुटा अपना घर हैं ||
कौन राहगीर, कौन हम-दम, ना खबर हैं ना डगर हैं |
एक दिन आसमान तक उछला था, आज सबर ही सबर हैं ||
मुकेश कुमार भंसाली |
30 सितम्बर, २०११.
मौसम बदलते रहे |
Your Destiny will take you to the Destination, Believe in Yourself.
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