Sunday, September 6, 2015



हसरत- ए -मोहब्बत का जो खुमार हो गया, हर इतवार को लगता हैं की प्यार हो गया |
पर जुम्मे के आते आते फिर खुदा में खोते हैं, बस शनिवार की रात ही चैन से सोते हैं ||

नासाज़ किया तबीयत को, तेरी ही रुखसत ने ।
फुरसत के पलों को यूँ न जाया करो ||

हसरतों में कैद हो तुम, पर हमसे फरार हो ।
तुम हो इस दिल की दुआ, तुम ही इसमें दरार हो ||

सितम कीजिये या रहम कीजिये, इस तरफ ज़रा सा तो ध्यान दीजिये |
तेरी राह तकते कटेगी ये उमर, जान लीजिये या जान लीजिये ||



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