हसरत- ए -मोहब्बत का जो खुमार हो गया, हर इतवार को लगता हैं की प्यार हो गया |
पर जुम्मे के आते आते फिर खुदा में खोते हैं, बस शनिवार की रात ही चैन से सोते हैं ||
फुरसत के पलों को यूँ न जाया करो ||
हसरतों में कैद हो तुम, पर हमसे फरार हो ।
तुम हो इस दिल की दुआ, तुम ही इसमें दरार हो ||
तेरी राह तकते कटेगी ये उमर, जान लीजिये या जान लीजिये ||
No comments:
Post a Comment