Saturday, May 30, 2015

                  खामोश लफ्ज़

तेरे दिल के पत्थर से मेरा दिल घबराता हैं,
और तेरे हर आंसू से मेरा दिल पिघलता हैं |

क़त्ल करके मेरे दिल का, कुर्बानी कहते हो,
तुम आंसू टपकाते हो, मेरा खून निकलता हैं |

ले लो अंगूठा मुझसे, मेरे ही क़त्लनामे पर,
सम्मा की दीवानगी में, परवाना जलता हैं ।

मेरी हर गुज़ारिश को तुम गुमराह करते हो,
हमारी हसरतों पे तुम्हारा वश जो चलता हैं |
 
वो फिर पूर्व से निकलेगा, जो पश्चिम में ढलता हैं ,
एक दिन हम भी चल देंगे, आखिर वक़्त बदलता हैं ।

वक़्त हमें बुलाता हैं, वो तुम्हे भूलाता हैं,
समय हैं सबका हमसफ़र, वो चलता जाता हैं ।

वो तड़पाता हैं, वो मरहम लगाता हैं ।
वो जन्नत दिखाता हैं, पर वो चला ही जाता हैं ॥


                                                                         मुकेश कुमार भंसाली
                                                                         ३० मई, २०१५

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