Sunday, September 6, 2015


वो लोग नासमझ हैं, जो ज्यादा समझते हैं |
जहाँ दिलों की जरूरत हैं, दिमाग लगाते हैं ||

बाँहों में नहीं आना तो ख्वाबों से निकल जाओ |
अपनी परछाई से हमपे अँधेरा मत करो ||

तेरी तारीफ में कुछ पल, मैं मौन हो जाता हूँ |
मज़म्मत नहीं करता तेरी, क्या ये तारीफ भी कम हैं ?

सारे अल्फ़ाज़ अधूरे हैं, बस मौन ही मुकम्मल हैं ।
कभी बारिश को रोते हैं, कभी बारिश में रोते हैं ||

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