Sunday, September 6, 2015


वो लोग नासमझ हैं, जो ज्यादा समझते हैं |
जहाँ दिलों की जरूरत हैं, दिमाग लगाते हैं ||

बाँहों में नहीं आना तो ख्वाबों से निकल जाओ |
अपनी परछाई से हमपे अँधेरा मत करो ||

तेरी तारीफ में कुछ पल, मैं मौन हो जाता हूँ |
मज़म्मत नहीं करता तेरी, क्या ये तारीफ भी कम हैं ?

सारे अल्फ़ाज़ अधूरे हैं, बस मौन ही मुकम्मल हैं ।
कभी बारिश को रोते हैं, कभी बारिश में रोते हैं ||


हसरत- ए -मोहब्बत का जो खुमार हो गया, हर इतवार को लगता हैं की प्यार हो गया |
पर जुम्मे के आते आते फिर खुदा में खोते हैं, बस शनिवार की रात ही चैन से सोते हैं ||

नासाज़ किया तबीयत को, तेरी ही रुखसत ने ।
फुरसत के पलों को यूँ न जाया करो ||

हसरतों में कैद हो तुम, पर हमसे फरार हो ।
तुम हो इस दिल की दुआ, तुम ही इसमें दरार हो ||

सितम कीजिये या रहम कीजिये, इस तरफ ज़रा सा तो ध्यान दीजिये |
तेरी राह तकते कटेगी ये उमर, जान लीजिये या जान लीजिये ||



Saturday, May 30, 2015

                  खामोश लफ्ज़

तेरे दिल के पत्थर से मेरा दिल घबराता हैं,
और तेरे हर आंसू से मेरा दिल पिघलता हैं |

क़त्ल करके मेरे दिल का, कुर्बानी कहते हो,
तुम आंसू टपकाते हो, मेरा खून निकलता हैं |

ले लो अंगूठा मुझसे, मेरे ही क़त्लनामे पर,
सम्मा की दीवानगी में, परवाना जलता हैं ।

मेरी हर गुज़ारिश को तुम गुमराह करते हो,
हमारी हसरतों पे तुम्हारा वश जो चलता हैं |
 
वो फिर पूर्व से निकलेगा, जो पश्चिम में ढलता हैं ,
एक दिन हम भी चल देंगे, आखिर वक़्त बदलता हैं ।

वक़्त हमें बुलाता हैं, वो तुम्हे भूलाता हैं,
समय हैं सबका हमसफ़र, वो चलता जाता हैं ।

वो तड़पाता हैं, वो मरहम लगाता हैं ।
वो जन्नत दिखाता हैं, पर वो चला ही जाता हैं ॥


                                                                         मुकेश कुमार भंसाली
                                                                         ३० मई, २०१५