Thursday, October 11, 2012

The Lioness




The Lioness

Once upon a time. I was a lion. I used to roam everywhere like a king in forest.
My roar was long and loud. I found it wonderful and felt proud.
I was Powerful and looks so bright, Everything was smooth, cool and right.
As the time passed, I thought to have a queen, a Lioness.

This incident, sometimes called accident, happened some years back.
Now I can say "Once upon a time, I was the king of forest".
Now I am a civilized human being but she still seems me a lioness.
Young, charming but ferocious and threatening.
It's my fatal love, probably

Moral : Diamond cuts the diamond and females are good at cutting.

Mukesh Kumar Bhansali
10/10/2012
Love

Tuesday, October 9, 2012

सिला


                                                           सिला

जहाँ मैं काम करता था, अपना घर समझता था; घर से ज्यादा तो, वहीं मैं रहता था |
दिन, रात, छुट्टी, दिवाली,  वही अपना शिव था, वही अपना अली |

एक ख्वाब, एक ख्वाहिश, सीने में पलती थी; एक साजिश, एक रंजिश, साथ में चलती थी |
एक दिन पीछे से वार हुआ, धुंधला ये संसार हुआ, पानी आँखों की तरफ चला, पर हलक ने वो घूँट पिया ||

ये सिला था मेरी वफ़ा का, उस बे-वफ़ा से; अब आँखों में चुभने लगे थे, तौहीन के तमाशे |
मैं सदस्य हूँ, इस परिवार का; मुझे ऐसा लगता था; पर वो कमबख्त मुझे मजदूर समझाता था ||

ना मैं मजदूर हूँ, ना मजबूर हूँ; ये सिले हैं तुम्हारे कि अब इतना दूर हूँ |
घर छोड़ के आये थे, अब एक और घर छोड़ते हैं; वापस कभी ना आयेंगे, सारे रिश्ते तोड़ते हैं ||
                                                                                                                                                                                  अलविदा
                                                                                                                                                                                  मुकेश कुमार भंसाली
                                                                                                                                                                                  १ अक्टूबर, २०१२ 

बंदगी

                  बंदगी

किसके दिल में क्या छुपा हैं, आखिर किसे पता हैं |
कौन अपना हमदर्द हैं, और कौन बेवफा हैं ||

आँखों में चमक हैं सबके, और समां भी जवां हैं |
हर तरफ सरगोशियाँ हैं, साथ पूरा कारवां हैं ||
यारी से ही ज़िन्दगी, पर ज़िन्दगी एक जुआ हैं |
मैं बस जीतता चला गया, ये भी किसी की दुआ हैं ||
आँखें बोले दिल की भाषा, पर दोनों ही बेजुबां हैं |
क्या पता था कल का कातिल ही, आज मेहरबां हैं 

फिर हसरतें उनकी बेलगाम हो गयी, हमारी तौहीन सर-ए-आम हो गयी |
धडकनें धक् से रूक गयी, और साँसे भी जैसे जाम हो गयी ||
ख्वाबों में जी रहे थे जैसे, पर आज वो भ्रम टूटा हैं |
जिसपे बड़ा नाज़ था हमको, उसी ने हमें लूटा हैं ||

अब एक लम्बी ख़ामोशी हैं, ना हसरतें हैं ना मदहोशी हैं ||
ना मोह हैं ना माया हैं, बस सूकून भरी हैं ज़िन्दगी |
पर होठों से हंसी जाती नहीं, ये हैं अल्लाह की बंदगी ||
                                                                                                          9th September, २०१२
                                                                                                          मुकेश कुमार भंसाली 
                                                                                                          खुदा हाफिज़ |

Wednesday, June 27, 2012

तारीफ



तारीफ

तेरे बगैर, जहाँ गैर सा लगता हैं, तेरे संग सपना भी अपना सा लगता हैं ।
मेरी इबादतों में तेरा ही तेरा ज़िक्र हुआ हैं, खुदा से जो मांगता रहा, तू वो ही हसीन दुआ हैं ।।

तुझे पा लेना, एक सपने को जी लेने जैसा हैं, तेरे लिए इस दिल में इश्क--जूनून ऐसा हैं ।
तेरा हुस्न भी एक सितम, और सितम भी एक हसीन हरक़त हैं ।
तू जन्नत की अप्सरा हैं या खुदा की नेक बरक़त हैं ।।

तुझे देखकर आँखों का नूर बढ़ा हैं, और अब मुझे कुछ और नहीं दिखता, सामने हुजूर खड़ा हैं ।।

Saturday, April 28, 2012

Badappan

जब मैं  छोटा बच्चा था, खुद में खोया रहता था ।
 दुनिया बेचैनी में जगती थी, मैं चैन से सोया रहता था ।।

फिर मैं थोडा बड़ा हुआ, चैन से सोकर खड़ा हुआ;
 बाहर मस्त सवेरा था,  और सूरज भी अभी सुनहरा था ।
मैं ठंडी हवा में था घूमने निकला, बस वहीँ से हवाओं ने था रूख बदला ।।

मैं कुछ और बड़ा हुआ, .सूरज था सिर पे जड़ा हुआ ।
मैं अब काम भी करने लगा, मेरा रूतबा भी बढ़ने लगा ।।
फिर ठंडी हवा का झोंका आया, कितने सपने साथ लाया,
फिर दिन रात इतना व्यस्त हो गया, वो सूरज तो कब का अस्त हो गया ।।

हवाएं अब भी चलती हैं, दुपहर अब भी जलती हैं;
पर सब कुछ इतना सूना हैं की अहसास नहीं होता।
हर हादसा बस एक खबर हैं, कुछ खास नहीं होता ।।

खुद में खोया रहता था, अब खुद को कहीं खो दिया ।
कैसे मैं, जलती मसाल की, जिन्दा मिसाल हो गया ।।

सब कुछ तो हैं मेरे पास, पर न जाने कौनसा लफड़ा हो गया ।
माँ मुझे गौर से देख, क्या मैं ज्यादा बड़ा हो गया ?

Friday, April 6, 2012

My Game : Nav Hari

Hye Friends, I have a game for you which I have created recently. It is game of 9 Soldiers called Nav Hari. Visit to below link and enjoy. Have fun and cheersssssssssss. http://nazariya.webs.com/