Monday, December 12, 2011

ख्वाहिशें

                        ----ख्वाहिशें----
                       

ये जिंदा दिली, ये खुश मिजाजी, शेर-सा जिगर और शौक नवाबी |
        अनंत खुशियों का दौर हैं, सागर की लहरों-सा शोर हैं ||
भाग्य ने दिये, नजराने, नुमाइशें, और ये मेरी हसीन ख्वाहिशें |
   

सब तरफ से सुख आता हैं, दुःख आने से शर्माता हैं,
    यार भी मिलते हँसते-हँसते, ये हसीन पल भी कितने सस्ते |
न जाने गम कहाँ गुम हैं, क्यूँ इतना गुमशुम हैं,
    बस एक ही चीज़ बदल रही थी, लोगों ने वक़्त कहा उसे ||
                                    मेरी हसीन ख्वाहिशें......

अब सुख की चादर फटने लगी, दुःख की शर्म भी हटने लगी,
    हसीन पल भी बूढ़े हो चले, मन बदले और बदले मनचले |
हमने खुशियाँ पैसों से तोली, बच्चा बोले अब बनिये की बोली,
    दिल्लगी का मौसम अब भी हैं, पर खुद से मोहब्बत हैं किसे ?
घटायें अब भी करती हैं बारिशें, मुझको खाती मेरी ही ख्वाहिशें,
    क्या नज़राने और क्या नुमाइशें, अब हैं मेरी असीम ख्वाहिशें................

                                                     खुदा हाफिज़
                                                     मुकेश कुमार भंसाली
                                                     मई 22, 2011

Saturday, October 8, 2011

परिस्थितियां


----परिस्थितियां----
आज सुबह सूरज बहुत खुश था, सुनहरा, केसरिया, कोई आम हापूस था |
पेड़, पक्षी और मैदान, सब कुछ एकदम खास था, और इन ठंडी हवाओं में जन्नत का अहसास था |
एक माँ ने अपने बच्चे को जगाया और बड़े प्यार से दूध पिलाया |

फिर कुछ पारा चढ़ा, बच्चा भी कुछ आगे बढ़ा,
ज़िन्दगी ने अब जोर पकड़ा, काम, थकान और तनाव ने जकड़ा |

फिर जून का आफ्टर नून हुआ, खून - पसीना सब हुआ धुंआ,
दिल अब आहें भरने लगा, और जीने से डरने लगा |
दुनिया से नफरत होने लगी, बेवफा ज़िन्दगी और इतनी बंदगी,
फिर सूरज कुछ शांत हुआ, इस तरह दोपहर का अंत हुआ |

अब ठंडक बरसने लगी, ज़िन्दगी फिर से हंसने लगी |.
किसान खेतों से घर लौटे और पंछी घोंसलों में,
सब फिर से जिंदा हो गए, उम्मीदों में, होंसलों में |

एक बच्चा माँ को ढूंढ़ रहा हैं, एक गोदी में उंघ रहा हैं,
ठंडी हवा भी चलने लगी, एक और शाम ढलने लगी |
कल फिर सूरज निकलेगा, एक और बच्चा सीख लेगा |



अब हमने जो सिखा हैं उसपे गौर फरमाते हैं,
आपको सीधा "मोरल ऑफ़ द स्टोरी" बताते हैं :

"हम टीवी हैं तो वो टोवर हैं, हम बूंद हैं तो वो शोवर हैं,
बस परिस्तिथियाँ बदल जाती हैं मेरे दोस्त, क्यों की ये 'सूर्य का पॉवर हैं ".

मुकेश कुमार भंसाली |
२२ मई, २०११.
नजाकात वक़्त की |

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सितारों से आगे जहाँ और भी हैं |

जीवन यात्रा


                   --- जीवन यात्रा ----

एक दिन गलियों से गुजर रहा था, कुछ नए चेहरे दिखे,
राहों में उनसे यारी हो गयी, और कुछ प्यारे से बंधन बने |

अब रोज़ महफिलें सजने लगी, धड़कने जोर से बजने लगी:
वक़्त आराम से कटने लगा पर चौराहे से रास्ता बंटने लगा |
विदा होने का वक़्त हो गया, वक़्त थोडा-सा सख्त हो गया:
पर कहते हैं दुनिया गोल हैं, "फिर मिलेंगे" ये तय हो गया ||

कुछ दिन सन्देश मिलते रहे उनके, पर कुछ नए चेहरे साथ थे:
यादें अब भी ताज़ा थी, पर हाथों में नए हाथ थे |
ऐसे ही रास्ते बदलते गए, जीवन के चेहरे नये नये:
लोग आते थे, लोग जाते थे, गोल दुनिया में गुम हो गए ||

वो राहगीर अब भी याद हैं, पर उनका अता पता नहीं|
मैं तो बस चलता गया, इसमें मेरी कोई खता नहीं ||

मंजिल पे आकर भी दिल, उन गलियों में भटक रहा हैं,
गला भी काफी नम हो चला, आँखों में कोई अटक रहा हैं |
इस विशाल धरती पर भी, मन कितना अधर हैं,
महलों की ख्वाहिश में छुटा अपना घर हैं ||

कौन राहगीर, कौन हम-दम, ना खबर हैं ना डगर हैं |
एक दिन आसमान तक उछला था, आज सबर ही सबर हैं ||


                                                                                      मुकेश कुमार भंसाली |
                                                                                      30 सितम्बर, २०११.
                                                                                      मौसम बदलते रहे |

Your Destiny will take you to the Destination, Believe in Yourself.

Monday, May 30, 2011

मोहब्बत


                                             प्यार 
नीला आसमान अब काला हो चला हैं; रात घिर आई, ये अँधेरा एक बला हैं|
पर इन तारों का मोह मुझसे छुटता ही नहीं, और एक तारा आसमान से टूटता ही नहीं||

बस देखता ही रहा कुछ कर न सका,ये मुझ तक नहीं पहुंचे मुझे कोई रास्ता ना दिखा|

में जाऊं अब जहाँ जहाँ, ये दिखते मुझको वहां वहां,
मेरा प्यार और बढ़ गया, जैसे कोई नशा चढ़ गया|
पर आखिर मैं घर को गया और खाना खा कर सो गया,
सपनों में तारे मिलने आये, शायद उन्हें भी मुझसे प्यार हो गया||

वो भी मजबूर, मेरी मजबूरी
सपनों में मिलन, हकीकत में दूरी;
अधूरी जिन्दगी, सपने जरूरी
इस थोड़ी सी खुशी में निकली जिन्दगी ये पूरी|

एक दिन में भी चल बसा, इस दुनिया से रवाना हुआ,
ऊपर मुझे जन्नत मिली, में भी एक तारा हुआ.....

विदा.......
DATE: 8th DEC., 2009
MUKESH BHANSALI                                           

मायाजाल

​​

            मायाजाल 

एक  साल  बड़ा  बेमिसाल , कितनी  मस्ती , कितना  धमाल ,
बिंदास  अदाएं, मदमस्त  हवाएं  और  वो  बिन  जुम्मे  की  दुआएं| 
वो खुशहाल दिन और नशीली रातें, वो खुमारी में डूबी हसीं बरसातें,
कितना  दिलखुश और  खुशमिजाज़, दुनिया  नहीं  रोक  पायेगी  आज |
कितने  दोस्त  कितने  साथी, कोई  बेख़ौफ़, कोई जज्बाती,
जॉब भी लगी और कमाने लगा लाल,
                         पढने का वो अंतिम साल........

ऐ जिंदगी एक पल में तूने  कितना दिखा दिया, पर वक़्त ने अब कुछ और सिखा दिया,
कितना कुछ बदल गया हँसते हंसते, अब हंसी से ही ऊब गए, ना किसी को सताते|
घनी वादियाँ वीरान हो गयी, तन्हाई फिर से मेहरबान हो गयी,
मुस्कान तोड़ के निकले सन्नाटे, सीना फोड़ के निकले हैं कांटे|
"अब दिल को और क्या चाहिए, करता रहूँ बस यही सवाल",
                        पढने का वो अंतिम साल..........

सब कुछ तो इतना ठीक चला, फिर पैसा ही क्यूँ बना बला,
हँसता तो मैं अब भी हूँ पर चुप क्यूँ हैं ये मन मनचला|
साथ मेरे आज जनमत हैं, पूरी होती हसरत हैं,
फिर क्यूँ ये दिल तन्हा हैं, क्यूँ दुनिया से नफरत हैं||
देख मुझे जन्नत में कभी, इन्द्र ने चली एक गहरी चाल,
स्वर्ग का शासन पाने को पुनः, उसी ने बुना ये मायाजाल.....
                                         
 पढने का वो अंतिम साल........  

Aazadi


                               कोई गम नहीं

एक दिन उस खुदा के सम्मुख, मेरा खुदा खड़ा था,
मैंने अपने खुदा को माना, हालाँकि वो बड़ा था|
मैं अपने खुदा के आगे, एकदम निढाल पड़ा था,
और सर्वत्र खुदा के आगे, सीना तान खड़ा था||

1.) फिर सर्वत्र खुदा ने वक़्त को कुछ ऐसे बदल दिया,
मुझे लगा जैसे, वो मेरे खुदा से जल गया.
मैं अपने खुदा से जुदा हो गया, हमेशा के लिए अलविदा हो गया|

2.) कुछ दिन मैंने गम मनाया, फिर मन को कुछ ऐसे मनाया,
"मेरा खुदा एक सपना था, जिसमें था में खो गया;
प्यार भले ही छुट गया पर मैं आज़ाद हो गया.
अब क्या जीना, अब क्या मरना और क्या दुनिया से डरना,
ज़िन्दगी आराम से जी लूँगा, मुझे इश्क नहीं करना|"

                                    मुकेश कुमार भंसाली