----ख्वाहिशें----
ये जिंदा दिली, ये खुश मिजाजी, शेर-सा जिगर और शौक नवाबी |
अनंत खुशियों का दौर हैं, सागर की लहरों-सा शोर हैं ||
भाग्य ने दिये, नजराने, नुमाइशें, और ये मेरी हसीन ख्वाहिशें |
सब तरफ से सुख आता हैं, दुःख आने से शर्माता हैं,
यार भी मिलते हँसते-हँसते, ये हसीन पल भी कितने सस्ते |
न जाने गम कहाँ गुम हैं, क्यूँ इतना गुमशुम हैं,
बस एक ही चीज़ बदल रही थी, लोगों ने वक़्त कहा उसे ||
मेरी हसीन ख्वाहिशें......
अब सुख की चादर फटने लगी, दुःख की शर्म भी हटने लगी,
हसीन पल भी बूढ़े हो चले, मन बदले और बदले मनचले |
हमने खुशियाँ पैसों से तोली, बच्चा बोले अब बनिये की बोली,
दिल्लगी का मौसम अब भी हैं, पर खुद से मोहब्बत हैं किसे ?
घटायें अब भी करती हैं बारिशें, मुझको खाती मेरी ही ख्वाहिशें,
क्या नज़राने और क्या नुमाइशें, अब हैं मेरी असीम ख्वाहिशें................
खुदा हाफिज़
मुकेश कुमार भंसाली
मई 22, 2011
ये जिंदा दिली, ये खुश मिजाजी, शेर-सा जिगर और शौक नवाबी |
अनंत खुशियों का दौर हैं, सागर की लहरों-सा शोर हैं ||
भाग्य ने दिये, नजराने, नुमाइशें, और ये मेरी हसीन ख्वाहिशें |
सब तरफ से सुख आता हैं, दुःख आने से शर्माता हैं,
यार भी मिलते हँसते-हँसते, ये हसीन पल भी कितने सस्ते |
न जाने गम कहाँ गुम हैं, क्यूँ इतना गुमशुम हैं,
बस एक ही चीज़ बदल रही थी, लोगों ने वक़्त कहा उसे ||
मेरी हसीन ख्वाहिशें......
अब सुख की चादर फटने लगी, दुःख की शर्म भी हटने लगी,
हसीन पल भी बूढ़े हो चले, मन बदले और बदले मनचले |
हमने खुशियाँ पैसों से तोली, बच्चा बोले अब बनिये की बोली,
दिल्लगी का मौसम अब भी हैं, पर खुद से मोहब्बत हैं किसे ?
घटायें अब भी करती हैं बारिशें, मुझको खाती मेरी ही ख्वाहिशें,
क्या नज़राने और क्या नुमाइशें, अब हैं मेरी असीम ख्वाहिशें................
खुदा हाफिज़
मुकेश कुमार भंसाली
मई 22, 2011
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