Tuesday, December 20, 2022

झरना जीवन का

 
        ----------  झरना जीवन का ----------

एक किलकारी गूंजी थी, रुदन पर सब हर्षाये थे |
मीठी नींद आती थी, कितने तो हम साये थे ||
एक छोटी सी दुनिया थी, जहाँ मन नहीं; अमन था |
बिना बात के नाचे, गायें; और जुड़ती जाती जनता |
झर-झर, झर-झर, झरता था, जो झरना था जीवन का ||

एक गर्जना उठी गगन में, कितने तो घबराये थे |
गुरूर की दहाड़ पे बस, हम ही तो इतराए थे | |
दुनिया एक छोटी चीज़ थी, बड़ा तो मेरा मन था,
इस दुनिया में ऐसे उलझे, अब मेरा मन ही भवन था |
ऐसे कैसे नाचे, गायें, किया ये हमने कब था,
झरने पे बांध बनाया था बस, और बंधा सारा जीवन था ||

एक चीख भी निकली हैं, हो गये हैं शर्मिंदा |
जीवन कैसे बंध जायेगा, हैं जब तक हम जिंदा ||
दुनिया अब भी सुन्दर हैं, वो मायाजाल था मन का |
नहीं मैं राजा राज-महल का, मैं झोंका बस पवन का |
तोड़ बांध ह्रदय के सारे, बह जाये निर्मल गंगा | |
कल-कल, अविरल बहती जाये, जीवन की सतत धारा |
किलकारी फिर से गूंजी हैं, आया सौभाग्य हमारा ||

                                                                                 २०/१२/२०२२
                                                                                 मुकेश कुमार भंसाली


Wednesday, March 2, 2022

उड़ने दो

 

      --------------- उड़ने दो ----------------

इन हाथों को जो बांधे हैं; हथ-कड़ियाँ, टूट ही जायेगी |
लिपटी हैं, जो पैरों में; ज़ंजीरें छूट ही जायेगी ||
आँखों पर जो बनेगी पट्टी, आँखों को वो न सुहायेगी |
थाम लिया इन साँसों को तो, सांसें ही विदा हो जायेगी ||
हम स्वतंत्र हैं, हम स्वछन्द हैं, बंदिश हमें न भायेगी ||
 
तुम से ही था, तुम से ही हूँ; पर दर्पण हूँ मैं, उस क्षितिज का |
आसमान से जुड़ा हुआ जो, आसमान से मिला कभी ना ||
घोंसले में बड़ा हुआ, पर अब मेरे भी पर हैं |
मुझे बादल बुलाते हैं, और अब वही मेरा घर हैं ||
 
मुकेश कुमार भंसाली
०१ मार्च, 2022