Wednesday, January 6, 2021

उन्मुक्त गगन

                ---- उन्मुक्त गगन ----


बच्चे जो अच्छे लगते हैं, चैन से सोते, जगते हैं;

ना दौलत हैं, ना शौहरत हैं, पर खुश करते हैं फ़िज़ाएं | 

ज़िन्दगी खड़ी हैं फैलाकर बाहें, क्यूँ ना जीना चाहें  || 


ये सड़क बिछायी; तो तुमने, ये मंज़िल बनायीं; तो तुमने | 

सपने दिखाए, भी तुमने, हम देखें, पर तेरी निगाहें | 

हम चलते हैं, हम जलते हैं, मंज़िल पाकर भी पिघलते हैं; चुनें क्यूँ ऐसी राहें ?

कुंदन में भी यदि क्रंदन हैं, तो उसे भी हम लौटायें |

अभी सूर्य चमकता हैं, कैसे हम मुरझायें ?

ज़िन्दगी खड़ी हैं फैलाकर बाहें, क्यूँ  ना जीना चाहें | | 


ये सागर, और ये किनारा; सूरज, चाँद और तारा; सारा संसार हमारा | 

हम बिंदु हैं, तो सिंधु के, बोतल में क्यूँ बंध जायें ?

हम पंछी उन्मुक्त गगन के, पिंजरे में क्योंकर जायें;

बादल हैं, इस नील गगन के, कैसे सूखे रह जायें;

क्यूँ ना आज छा जायें, जीवन रस बरसाएँ ... 


मुकेश कुमार भंसाली 

६ जनवरी, २०२१