खामोश लफ्ज़
तेरे दिल के पत्थर से मेरा दिल घबराता हैं,
और तेरे हर आंसू से मेरा दिल पिघलता हैं |
क़त्ल करके मेरे दिल का, कुर्बानी कहते हो,
तुम आंसू टपकाते हो, मेरा खून निकलता हैं |
ले लो अंगूठा मुझसे, मेरे ही क़त्लनामे पर,
सम्मा की दीवानगी में, परवाना जलता हैं ।
मेरी हर गुज़ारिश को तुम गुमराह करते हो,
हमारी हसरतों पे तुम्हारा वश जो चलता हैं |
वो फिर पूर्व से निकलेगा, जो पश्चिम में ढलता हैं ,
एक दिन हम भी चल देंगे, आखिर वक़्त बदलता हैं ।
वक़्त हमें बुलाता हैं, वो तुम्हे भूलाता हैं,
समय हैं सबका हमसफ़र, वो चलता जाता हैं ।
वो तड़पाता हैं, वो मरहम लगाता हैं ।
वो जन्नत दिखाता हैं, पर वो चला ही जाता हैं ॥
मुकेश कुमार भंसाली
३० मई, २०१५