Art Of Living
पानी कि लहरें, पत्थर का किनारा; मिलते हैं पल भर के लिए ।
फिर पानी की तरंगें पानी में बहीं, और पत्थर के अरमां भी पत्थर ही हुए ॥
पानी न रूका, पत्थर न चला, फिर भी साथ क्यूँ हैं भला ।
ऐसी बेदिली देखकर, पानी आँखों से निकला ॥
हवा से पैगाम आते रहे, मौसम आते जाते रहे ।
पर नीयती कभी बदली ही नहीं, बस हमेशा गुनगुनाते रहे ॥
सागर आज भी प्यासा हैं, जल का जीवन भी निर्जला ।
शायद बहना ही जीना हैं, और...
होठों कि हंसी.....
बस एक कला ॥
मुकेश कुमार भंसाली ।
१४/०१/२०१४
पानी कि लहरें, पत्थर का किनारा; मिलते हैं पल भर के लिए ।
फिर पानी की तरंगें पानी में बहीं, और पत्थर के अरमां भी पत्थर ही हुए ॥
पानी न रूका, पत्थर न चला, फिर भी साथ क्यूँ हैं भला ।
ऐसी बेदिली देखकर, पानी आँखों से निकला ॥
हवा से पैगाम आते रहे, मौसम आते जाते रहे ।
पर नीयती कभी बदली ही नहीं, बस हमेशा गुनगुनाते रहे ॥
सागर आज भी प्यासा हैं, जल का जीवन भी निर्जला ।
शायद बहना ही जीना हैं, और...
होठों कि हंसी.....
बस एक कला ॥
मुकेश कुमार भंसाली ।
१४/०१/२०१४
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