Monday, May 30, 2011

मोहब्बत


                                             प्यार 
नीला आसमान अब काला हो चला हैं; रात घिर आई, ये अँधेरा एक बला हैं|
पर इन तारों का मोह मुझसे छुटता ही नहीं, और एक तारा आसमान से टूटता ही नहीं||

बस देखता ही रहा कुछ कर न सका,ये मुझ तक नहीं पहुंचे मुझे कोई रास्ता ना दिखा|

में जाऊं अब जहाँ जहाँ, ये दिखते मुझको वहां वहां,
मेरा प्यार और बढ़ गया, जैसे कोई नशा चढ़ गया|
पर आखिर मैं घर को गया और खाना खा कर सो गया,
सपनों में तारे मिलने आये, शायद उन्हें भी मुझसे प्यार हो गया||

वो भी मजबूर, मेरी मजबूरी
सपनों में मिलन, हकीकत में दूरी;
अधूरी जिन्दगी, सपने जरूरी
इस थोड़ी सी खुशी में निकली जिन्दगी ये पूरी|

एक दिन में भी चल बसा, इस दुनिया से रवाना हुआ,
ऊपर मुझे जन्नत मिली, में भी एक तारा हुआ.....

विदा.......
DATE: 8th DEC., 2009
MUKESH BHANSALI                                           

मायाजाल

​​

            मायाजाल 

एक  साल  बड़ा  बेमिसाल , कितनी  मस्ती , कितना  धमाल ,
बिंदास  अदाएं, मदमस्त  हवाएं  और  वो  बिन  जुम्मे  की  दुआएं| 
वो खुशहाल दिन और नशीली रातें, वो खुमारी में डूबी हसीं बरसातें,
कितना  दिलखुश और  खुशमिजाज़, दुनिया  नहीं  रोक  पायेगी  आज |
कितने  दोस्त  कितने  साथी, कोई  बेख़ौफ़, कोई जज्बाती,
जॉब भी लगी और कमाने लगा लाल,
                         पढने का वो अंतिम साल........

ऐ जिंदगी एक पल में तूने  कितना दिखा दिया, पर वक़्त ने अब कुछ और सिखा दिया,
कितना कुछ बदल गया हँसते हंसते, अब हंसी से ही ऊब गए, ना किसी को सताते|
घनी वादियाँ वीरान हो गयी, तन्हाई फिर से मेहरबान हो गयी,
मुस्कान तोड़ के निकले सन्नाटे, सीना फोड़ के निकले हैं कांटे|
"अब दिल को और क्या चाहिए, करता रहूँ बस यही सवाल",
                        पढने का वो अंतिम साल..........

सब कुछ तो इतना ठीक चला, फिर पैसा ही क्यूँ बना बला,
हँसता तो मैं अब भी हूँ पर चुप क्यूँ हैं ये मन मनचला|
साथ मेरे आज जनमत हैं, पूरी होती हसरत हैं,
फिर क्यूँ ये दिल तन्हा हैं, क्यूँ दुनिया से नफरत हैं||
देख मुझे जन्नत में कभी, इन्द्र ने चली एक गहरी चाल,
स्वर्ग का शासन पाने को पुनः, उसी ने बुना ये मायाजाल.....
                                         
 पढने का वो अंतिम साल........  

Aazadi


                               कोई गम नहीं

एक दिन उस खुदा के सम्मुख, मेरा खुदा खड़ा था,
मैंने अपने खुदा को माना, हालाँकि वो बड़ा था|
मैं अपने खुदा के आगे, एकदम निढाल पड़ा था,
और सर्वत्र खुदा के आगे, सीना तान खड़ा था||

1.) फिर सर्वत्र खुदा ने वक़्त को कुछ ऐसे बदल दिया,
मुझे लगा जैसे, वो मेरे खुदा से जल गया.
मैं अपने खुदा से जुदा हो गया, हमेशा के लिए अलविदा हो गया|

2.) कुछ दिन मैंने गम मनाया, फिर मन को कुछ ऐसे मनाया,
"मेरा खुदा एक सपना था, जिसमें था में खो गया;
प्यार भले ही छुट गया पर मैं आज़ाद हो गया.
अब क्या जीना, अब क्या मरना और क्या दुनिया से डरना,
ज़िन्दगी आराम से जी लूँगा, मुझे इश्क नहीं करना|"

                                    मुकेश कुमार भंसाली