--------------- उड़ने दो ----------------
इन हाथों को जो बांधे हैं; हथ-कड़ियाँ, टूट ही जायेगी |
लिपटी हैं, जो पैरों में; ज़ंजीरें छूट ही जायेगी ||
आँखों पर जो बनेगी पट्टी, आँखों को वो न सुहायेगी |
थाम लिया इन साँसों को तो, सांसें ही विदा हो जायेगी ||
हम स्वतंत्र हैं, हम स्वछन्द हैं, बंदिश हमें न भायेगी ||
तुम से ही था, तुम से ही हूँ; पर दर्पण हूँ मैं, उस क्षितिज का |
आसमान से जुड़ा हुआ जो, आसमान से मिला कभी ना ||
घोंसले में बड़ा हुआ, पर अब मेरे भी पर हैं |
मुझे बादल बुलाते हैं, और अब वही मेरा घर हैं ||
मुकेश कुमार भंसाली
०१ मार्च, 2022