--- रुदन ---
हंसना कितना ही अच्छा हो, हमको रोना ही जमता हैं |
रोना हैं, कोई हंसी नहीं, थमते थमते थमता हैं | |
जन्मों से हम रोये हैं, दुःख के सागर में खोये हैं |
अब तो हंसी खटकती हैं, कुछ अनजानी सी लगती हैं | |
वो ऐसे कैसे हँसता हैं ? पागल जैसा लगता हैं |
रोना हैं, कोई हंसी नहीं, थमते थमते थमता हैं | |
हंस भी लिए अगर दो पल, चलता रहे मन अविरल;
कौन हंसा हमारे संग, किसकी हंसी का क्या हैं ढंग |
वो चुपचाप क्यों बैठा हैं ? शायद हमसे जलता हैं |
रोना हैं, कोई हंसी नहीं, थमते थमते थमता हैं | |
ख़ुशी हम भी चाहते हैं, पर उसपर अधिकार बस मेरा हैं |
ये दुनिया बहुत बुरी हैं, और मेरा रंग सुनहरा हैं | |
ये देव भूमि, यह पुण्य धरा; इतिहास हमारे समक्ष खड़ा |
नर से नारायण हो जाने की, क्षमता हैं और समता हैं | |
रोना हैं, पर रोना भी; धीरे धीरे थमता हैं,
ये समता से थमता हैं, एक दिन निश्चित ही थमता हैं |
रोना हैं, कोई हंसी नहीं हैं, थमते थमते थमता हैं | |
२० अगस्त , २०२०
मुकेश कुमार भंसाली