Thursday, August 20, 2020

रुदन

                                --- रुदन ---


हंसना कितना ही अच्छा हो, हमको रोना ही जमता हैं |

रोना हैं, कोई हंसी नहीं, थमते थमते थमता हैं | |


जन्मों से हम रोये हैं, दुःख के सागर में खोये हैं |

अब तो हंसी खटकती हैं, कुछ अनजानी सी लगती हैं | |

वो ऐसे कैसे हँसता हैं ? पागल जैसा लगता हैं |

रोना हैं, कोई हंसी नहीं, थमते थमते थमता हैं | |


हंस भी लिए अगर दो पल, चलता रहे मन अविरल;

कौन हंसा हमारे संग, किसकी हंसी का क्या हैं ढंग |

वो चुपचाप क्यों बैठा हैं ? शायद हमसे जलता हैं |

रोना हैं, कोई हंसी नहीं, थमते थमते थमता हैं | |


ख़ुशी हम भी चाहते हैं, पर उसपर अधिकार बस मेरा हैं |

ये दुनिया बहुत बुरी हैं, और मेरा रंग सुनहरा हैं | |

ये देव भूमि, यह पुण्य धरा; इतिहास हमारे समक्ष खड़ा |

नर से नारायण हो जाने की, क्षमता हैं और समता हैं | |


रोना हैं, पर रोना भी; धीरे धीरे थमता हैं,

ये समता से थमता हैं, एक दिन निश्चित ही थमता हैं |

रोना हैं, कोई हंसी नहीं हैं, थमते थमते थमता हैं | |


                                                                                    २० अगस्त , २०२०

                                                                                    मुकेश कुमार भंसाली