Monday, September 26, 2016

बंदगी

                    --- बंदगी ---

किसके दिल में क्या छुपा हैं, आखिर किसे पता हैं |
कौन अपना हमदर्द हैं, और कौन बेवफा हैं ||

आँखों में चमक हैं सबके, और समां भी जवां हैं |
हर तरफ सरगोशियाँ हैं, साथ पूरा कारवां हैं ||

यारी से ही ज़िन्दगी, पर ज़िन्दगी एक जुआ हैं |
मैं बस जीतता चला गया, ये भी किसी की दुआ हैं ||

आँखें बोले दिल की भाषा, पर दोनों ही बेजुबां हैं |
क्या पता था कल का कातिल ही, आज मेहरबां हैं


फिर हसरतें उनकी बेलगाम हो गयी, हमारी तौहीन सर-ए-आम हो गयी |
धडकनें धक् से रूक गयी, और साँसे भी जैसे जाम हो गयी ||

ख्वाबों में जी रहे थे जैसे, पर आज वो भ्रम टूटा हैं |
जिसपे बड़ा नाज़ था हमको, उसी ने हमें लूटा हैं ||

अब एक लम्बी ख़ामोशी हैं, ना हसरतें हैं ना मदहोशी हैं ||
ना मोह हैं ना माया हैं, बस सूकून भरी हैं ज़िन्दगी |
पर होठों से हंसी जाती नहीं, ये हैं अल्लाह की बंदगी ||

                                                                                                    9th September, २०१२
                                                                                                    मुकेश कुमार भंसाली
                                                                                                    खुदा हाफिज़ |