---- ऐसा न था -----
नासाज़ किया हैं नीयत को, तेरी घटाओं ने,
गुस्ताखियों का पहले, पैगाम कभी न था ।
बेबाक किया हैं मुझको, तेरी अदाओं ने,
ऐतबार-ए-बेहयाई, सरेआम कभी न था ।
मन तो सदा विचरता हैं, ये कब कहाँ ठहरता हैं,
इन सिलसिलों का आलम, नाकाम कभी न था ।
एक हसीन ज़ालिम, सुबह शाम कभी न था ॥
वो रूह बनके मेरे भीतर उतर गयी,
दीपशिखा बनके, देदीप्यमान हुई ।
वह ज्वाला हैं, पर ज्योति हैं, बारिश बनके भिगोती हैं,
पहले ऐसा सुकून, आराम कभी न था ॥
वह राही हैं, हमराही हैं, साया हैं, परछाई है,
या सपने संजोने आयी है ।
इबादतों का ऐसा ईनाम, कभी न था,
एक मीत मेरा हमदम, हमनाम कभी न था ||
To & From,
M. B.
मुकेश कुमार भंसाली
२८/०८/२०१६
नासाज़ किया हैं नीयत को, तेरी घटाओं ने,
गुस्ताखियों का पहले, पैगाम कभी न था ।
बेबाक किया हैं मुझको, तेरी अदाओं ने,
ऐतबार-ए-बेहयाई, सरेआम कभी न था ।
मन तो सदा विचरता हैं, ये कब कहाँ ठहरता हैं,
इन सिलसिलों का आलम, नाकाम कभी न था ।
एक हसीन ज़ालिम, सुबह शाम कभी न था ॥
वो रूह बनके मेरे भीतर उतर गयी,
दीपशिखा बनके, देदीप्यमान हुई ।
वह ज्वाला हैं, पर ज्योति हैं, बारिश बनके भिगोती हैं,
पहले ऐसा सुकून, आराम कभी न था ॥
वह राही हैं, हमराही हैं, साया हैं, परछाई है,
या सपने संजोने आयी है ।
इबादतों का ऐसा ईनाम, कभी न था,
एक मीत मेरा हमदम, हमनाम कभी न था ||
To & From,
M. B.
मुकेश कुमार भंसाली
२८/०८/२०१६