वैराग
ये गर्म हवाएं भी कितनी निर्दोष हैं, ये दिशाएं क्यूँ इतनी खामोश हैं |
कल तक मैं मदहोश था, फिर आज क्यूँ इतना होश हैं ||
मन भी कितना मौन हैं, एक सन्नाटे का साया हैं; न खोया हैं न पाया हैं, बस एक ख्वाब गंवाया हैं |
मेरी अंतिम इच्छा, इकलौता ख्वाब, अंतिम सांस भी छोड़ गया; हवा में तस्वीर बनाई थी, वो तस्वीर भी कोई तोड़ गया ||
जीने कि वजह तलाशता हूँ, एक सुनसान रास्ता हूँ; दौलत शोहरत मेरी ख्वाहिश नहीं और प्यार कि गुंजाईश नहीं |
पर जीवन कितना सुलझ गया, हसरतें अब रही जो नहीं; बस चेहरे निहारता हूँ कि शायद वो मिल जाये कहीं ||
इबादत ||||||
३१/१०/2013
ये गर्म हवाएं भी कितनी निर्दोष हैं, ये दिशाएं क्यूँ इतनी खामोश हैं |
कल तक मैं मदहोश था, फिर आज क्यूँ इतना होश हैं ||
मन भी कितना मौन हैं, एक सन्नाटे का साया हैं; न खोया हैं न पाया हैं, बस एक ख्वाब गंवाया हैं |
मेरी अंतिम इच्छा, इकलौता ख्वाब, अंतिम सांस भी छोड़ गया; हवा में तस्वीर बनाई थी, वो तस्वीर भी कोई तोड़ गया ||
जीने कि वजह तलाशता हूँ, एक सुनसान रास्ता हूँ; दौलत शोहरत मेरी ख्वाहिश नहीं और प्यार कि गुंजाईश नहीं |
पर जीवन कितना सुलझ गया, हसरतें अब रही जो नहीं; बस चेहरे निहारता हूँ कि शायद वो मिल जाये कहीं ||
इबादत ||||||
३१/१०/2013