Saturday, October 8, 2011

परिस्थितियां


----परिस्थितियां----
आज सुबह सूरज बहुत खुश था, सुनहरा, केसरिया, कोई आम हापूस था |
पेड़, पक्षी और मैदान, सब कुछ एकदम खास था, और इन ठंडी हवाओं में जन्नत का अहसास था |
एक माँ ने अपने बच्चे को जगाया और बड़े प्यार से दूध पिलाया |

फिर कुछ पारा चढ़ा, बच्चा भी कुछ आगे बढ़ा,
ज़िन्दगी ने अब जोर पकड़ा, काम, थकान और तनाव ने जकड़ा |

फिर जून का आफ्टर नून हुआ, खून - पसीना सब हुआ धुंआ,
दिल अब आहें भरने लगा, और जीने से डरने लगा |
दुनिया से नफरत होने लगी, बेवफा ज़िन्दगी और इतनी बंदगी,
फिर सूरज कुछ शांत हुआ, इस तरह दोपहर का अंत हुआ |

अब ठंडक बरसने लगी, ज़िन्दगी फिर से हंसने लगी |.
किसान खेतों से घर लौटे और पंछी घोंसलों में,
सब फिर से जिंदा हो गए, उम्मीदों में, होंसलों में |

एक बच्चा माँ को ढूंढ़ रहा हैं, एक गोदी में उंघ रहा हैं,
ठंडी हवा भी चलने लगी, एक और शाम ढलने लगी |
कल फिर सूरज निकलेगा, एक और बच्चा सीख लेगा |



अब हमने जो सिखा हैं उसपे गौर फरमाते हैं,
आपको सीधा "मोरल ऑफ़ द स्टोरी" बताते हैं :

"हम टीवी हैं तो वो टोवर हैं, हम बूंद हैं तो वो शोवर हैं,
बस परिस्तिथियाँ बदल जाती हैं मेरे दोस्त, क्यों की ये 'सूर्य का पॉवर हैं ".

मुकेश कुमार भंसाली |
२२ मई, २०११.
नजाकात वक़्त की |

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सितारों से आगे जहाँ और भी हैं |

जीवन यात्रा


                   --- जीवन यात्रा ----

एक दिन गलियों से गुजर रहा था, कुछ नए चेहरे दिखे,
राहों में उनसे यारी हो गयी, और कुछ प्यारे से बंधन बने |

अब रोज़ महफिलें सजने लगी, धड़कने जोर से बजने लगी:
वक़्त आराम से कटने लगा पर चौराहे से रास्ता बंटने लगा |
विदा होने का वक़्त हो गया, वक़्त थोडा-सा सख्त हो गया:
पर कहते हैं दुनिया गोल हैं, "फिर मिलेंगे" ये तय हो गया ||

कुछ दिन सन्देश मिलते रहे उनके, पर कुछ नए चेहरे साथ थे:
यादें अब भी ताज़ा थी, पर हाथों में नए हाथ थे |
ऐसे ही रास्ते बदलते गए, जीवन के चेहरे नये नये:
लोग आते थे, लोग जाते थे, गोल दुनिया में गुम हो गए ||

वो राहगीर अब भी याद हैं, पर उनका अता पता नहीं|
मैं तो बस चलता गया, इसमें मेरी कोई खता नहीं ||

मंजिल पे आकर भी दिल, उन गलियों में भटक रहा हैं,
गला भी काफी नम हो चला, आँखों में कोई अटक रहा हैं |
इस विशाल धरती पर भी, मन कितना अधर हैं,
महलों की ख्वाहिश में छुटा अपना घर हैं ||

कौन राहगीर, कौन हम-दम, ना खबर हैं ना डगर हैं |
एक दिन आसमान तक उछला था, आज सबर ही सबर हैं ||


                                                                                      मुकेश कुमार भंसाली |
                                                                                      30 सितम्बर, २०११.
                                                                                      मौसम बदलते रहे |

Your Destiny will take you to the Destination, Believe in Yourself.